29/07/2012

मैँ क्या करुँ ?...

मैँ क्या करू?
चलो आज कुछ कसमे
तोड़ते है ,
चलो कुछ रस्मे
तोड़ते है ,
इन
वादों को भी तोड़ेंगे
अभी ,
चलो कुछ
उसूलो को भी तोड़
देते है ....
ये सब वो रस्मे
है ,कसमे है ,उसूल
है ,वादे है ,
जो एक कंजर जंग
लगी बेडी से है ,
जो आगे की राह
पर चलने नहीं देते ,
जो पीछे मुड़ने
भी नहीं देते ,
बस गाढ़ कर रख
दिया है हमें
जमीं पर ,
बहते अश्कोको ये
रुकने नहीं देते ....
जो दुनियाँ की रसम
सिर्फ मुझे
ही निभानी हो
उसका मैँ क्या करू ?
जो रित सिर्फ मुझे
ही निभानी हो
उसका क्या करू ?
जो उसूल सिर्फ मुझे
तोड़ते हो ?
उन
उसूलो का क्या करू
???
जो वादे सिर्फ
मुझे ही निभाने हो
उसे क्या करू ???
पैरो-
हाथों की बेड़ियाँ
तोडनी बहुत
आसान है ,
जो दिल पर
पहरा देती रहती
है हरदम
उस कैद में जीकर
क्या करू ????
जबकि मैं
जानता हूँ ...
मैं कुछ नहीं ,मेरे
निशान
कहीं नहीं मिले कोई गम नही
पर इस जिन्दगी को मैँ ,
तेरे बगैर काटने पर
मजबूर हो जाऊं उस
जिंदगी का मैँ क्या
करू ????????????...

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