04/06/2012

visvas me safalta

आत्मविश्वास
ही सफलता की प्रथम सीढी है ।
यह इस आधार पर कहा जा सकता है
कि जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास
कमजोर होता है वह अपने जीवन में
कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर
पाता । सफलता एवं उन्नती के
शिखर पर केवल वहीं पहुँच सकता है
जिसका मनोबल , आत्मविश्वास
सुदृढ़ होगा। आत्मविश्वास का जन्म
मन में होता है । मनुष्य का मन
समस्त इन्द्रियों का स्वामी और
गतिविधियों का केन्द्र
माना जाता है । मन के संकेत पर
ही एवं उसकी प्रेरणा से ही शरीर
का संचालन सुचारु रुप से होता है ।
यदि मन न होता तो मनुष्य शरीर
अपने आप में बड़ा लाचार होता ,
क्योकि मनुष्य का मन जो कहता है
वह वही करता है किन्तु मनुष्य
की कुछ सीमाएं भी हैं उन्हें वह पार
नहीं कर सकता । मनुष्य का शरीर
आग में जल जाता है , पानी में गल
जाता है ,वायु-धूप में वह सूख
जाता है , शीत धाम
वर्षा सभी इसे विचलित कर
देती हैं । यह तन थक जाता है , टूट
जाता है और हिम्मत हार बैठता है
। इस बेचारे शरीर से मनुष्य वह सब
कुछ नहीं कर सकता था जो आज उसने
कर दिखाया है मात्र शरीर से यह
सब संभव नही हो सकता उसके लिए
उसे अपने आप
को आत्मविश्वासी बनाना होगा तभी वह
अपने आप को ऊँचाइयों के शिखर पर
पहुँचा सकता है।
आज वैज्ञानिक,सास्कृतिक और
कलात्मक उपलब्धियाँ मनुष्य के
शरीर के कारण नहीं अपितु उसके
आत्मविश्वास के कारण ही प्राप्त
हो सकी हैं । आत्मविश्वास वह है
जिसे न तो कोई तोड़ सकता है , न
उसे हिला सकता है यदि वह
आत्मविश्वास द्रढ़ है तो । मनुष्य
का मन भी उस की सफलता में
कहीं न कहीं भागीदार अवश्य
होता है क्योंकि मन के अंदर
ही किसी कार्य को करने
की इच्छा का जन्म होता है । मन
शरीर का एक ऐसा यंत्र है जिससे
शरीर का संचालन सुचारु रुप से
होता है। इस लिए हम कह सकते हैं
कि जो व्यक्ति अपने मन से हार
मान बैठता है उसे संसार
की को भी ताकत
नहीं जिता सकती और
जो व्यक्ति अपने मन से
नही हारा है उसे संसार की कोई
भी ताकत हरा नहीं सकती ।
जो व्यक्ति अपने मन मे दृढ संकल्प के
साथ कार्य आरंभ करता है वह
कभी भी जीवन में हारता नहीं ।
मन न हारने का अर्थ है हिम्मत न
हारना , अपना हौसला बनाए
रखना । जब तक मनुष्य में यह
हौसला बना रहता है वह शांत
नहीं बैठता वह कोई न कोई नए
कार्य को करने में निरंतर
लगा ही रहता है । जिस
व्यक्ति का आत्मविश्वास दृढ है वह
बार-बार असफल होकर
भी सफलता की राह पर
सदा गतिशील रहता है ।
सफलता भी उसी के कदम चूमती है
जो अपने आप को सफलता पर ले
जाना चाहता है । जीवन एक
संघर्ष है और जो इस संघर्ष में सफल
होता है वही सही अर्थों में मनुष्य
है और जो इस संघर्ष से घबराकर
विचलित हो जाते हैं उनका जीवन
व्यर्थ है । जीना है तो सदैव
आत्मविश्वास के साथ ।
आत्मविश्वासी व्यक्ति तो
पहाड़ों को भी काटकर
नदियाँ बना सकता है, बस
जरुरता है दृढ़ संकल्प की । जीवन
एक संघर्ष है इसके लिए अंग्रेजी में
एक कहावत है कि -
"किसी भी लड़ाई में तब तक हार
नहीं माननी चाहिए जब तक
कि जीत न ली जाए।" वास्तव में
कोई भी संघर्ष या लड़ाई मनुष्य
अपने आत्मबल ( आत्मविश्वास ) के
भरोसे पर ही जीत सकता है।
मनुष्य शरीर तो एक साधन मात्र
रहता है।
हमें इतिहास में अनेक ऐसे
व्यक्तियो के उदाहरण मिल जाएंगे
जिन्होंने अपने आत्मबल के भरोसे से
दुनिया को झुका दिया असंभव
को भी संभव कर दिखाया । हमें
हमारे इतिहास में अनेक
व्यक्तियों के जीवन चरित्र पढ़ने
को मिलते हैं जो आजीवन
कठिनाइयाँ झेलते रहे किन्तु अन्त में
सफल हुए। आज उन
व्यक्तियों को असाधारण
महापुरुषों की श्रेणी में रखते हैं ।
इसका क्या कारण है?
इसका कारण यही है कि इन
लोगों ने विषम परिस्थितियों के
आगे अपने घुटने नहीं टेके और
उसका डटकर मुकाबला किया और
उन विषम परिस्थितियों पर
विजय प्राप्त की इसी कारण आज
हम उन्हें असाधारण मनुष्य मानते हैं
। जैसा कि हम उदाहरण
राष्ट्रपिता महात्मागाँधी जी का ले
सकते हैं जिन्होने अपने जीवन में
अपने आत्मविश्वास के बल पर
ब्रिटिश साम्राज्य की नीव
हिला कर रख दी थी । ब्रिटिश
सरकार उन्हें तोड़ न सकी क्यों ?
क्योंकि उनका आत्मविश्वास सुदृढ़
था । यदि उनका मनोबल कमजोर
पड़ जाता तो शायद आज हम
आजादी की हवा में सांस न ले रहे
होते बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य के
शासकों के अत्याचारों का शिकार
हो रहे होते । इस लिए हम कह
सकते हैं कि जिस
व्यक्ति का आत्मविश्वास दृढ़
होता है उसे बड़ी से
बड़ी बाधा भी नही हरा सकती ।
यह बात जरूर है
कि जो व्यक्ति सच्चाई की राह
पर चलता है उसे
कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है
किन्तु सफलता भी उसी व्यक्ति के
कदम चूमती है जो सच्चाई और
आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य
की प्राप्ति का प्रयास करता है

दूसरा उदाहरण हम
स्वामी विवेकानंद का ले सकते हैं
जिन्होंने अपनी विदेश यात्रा के
दौरान जब अमेरिका में भाषणों के
दौरान उन्हें भाषण देने
की अनुमति न मिलने पर वे निराश
नहीं हुए ,बल्कि उन्होंने किसी न
किसी तरह भाषण देने
की अनुमति प्राप्त कर ही ली
उन्होंने अपना आत्मविश्वास
नहीं खोया उन्हें केवल कुछ समय
की ही अनुमति मिली थी किन्तु
जैसे ही उन्होंने अपना भाषण आरंभ
किया वहाँ पर बैठे सभी लोग उनके
भाषण सुनकर मंत्र मुग्ध हो गए और
उन्होंने पाँच मिनट के स्थान पर
बीस मिनट का भाषण दिया और
अपने देश का नाम उज्ज्वल किया ।
यह सब कार्य उन्होंने अपने
आत्मविश्वास के बल पर
ही किया । उन्होंने
आशा का दामन नहीं छोड़ा और आज
एक महान पुरुष के रुप में याद किए
जाते हैं । जो व्यक्ति आत्मविश्वास
के साथ अपना कार्य करता उसे
सफलता अवश्य मिलती ह

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